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Ham áe hain ‘ibádat ko (23)

हम आए हैं इबादत को
ऐ रब्ब हमारे बीच में हो
तू बंदगी पर बरकत दे
कि होवे रुह और रास्ती से

हमारे दिल में उल्फत भर
और अपनी तरफ रुजू कर
दुनियाबी ख़्यालों से बचा
और अपनी बातों पर लगा

क़लाम जब पढ़ा जावे तब
तासीर तू उस की दे ऐ रब्ब
कि अपने कान से सुनें जो
हम दिल से माने उसी को

गीत गाने में जब हों मशगूल
हमारा गाना हो मक़बूल
जब सुनें वाज़ की बातों को
हमारे दिल पर असर हो

जब वक्त हो दुआ मांगने का
तू सुन हमारी ऐ खुदा
शुक्रगुजारी सुन तू ले
गुनाह हमारे माफ़ कर दे

तू हो हमारे दरमियान
तू दे हम सभों को ईमान
डाल अपनी रूह कलीसिया पर
और सबके दिल आसूदा कर

1 Ham áe hain ‘ibádat ko,
Ai Rabb, hamare bích men họ;
Tú bandagi par barakat de,
Ki howe rúh aur rástí se.

2 Hamáre dil men ulfat bhar,
Aur apní taraf rujú’ kar;
Dunyáwí khayálon se bachá,
Aur apní báton par lagá.

3 Kalám jab parhá jáwe,
tab Tásír tú us kí de, ai Rabb!
Ki apne kán se sunen jo
Ham dil se mánen usí ko.

4 Git gáne men jab hon mashgúl,
Hamárá gáná ho maqbúl;
Jab sunen wa’z kí báton ko,
Hamáre dil par asar ho.

5 Jab waqt ho du’á mangne ká
Tú sun hamárí, ai Khudá;
Shukrguzárí sun tú le;
Gunáh hamáre mu’áf kar de.

6 Tú ho hamáre darmiyán.
Tú de ham sabhon ko ímán;
Dál apná Ruh kalísiyá par,
Aur sab ke dil ásúda kar.

-J. F. Ullman.

God Bless You All!

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